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नोंद

वेळ   होता   म्हणून   थांबलो   जरा   तर थांबलास   म्हणत   वेळ   निघून   गेली जर तर   ची   दुनियादारी नव्हतीच   मुळी मन   दुभंगलंय … सारंच   हवंस   झालंय आहे … तरी   सुटून   जातंय   काही तुला   आनंद माझ्यापेक्षा   जास्त तुझ्याकडे   असण्याचा पण   माझ्या   नावातला   आनंद अजुन … तुला   कमवता   आला   नाही स्वप्न रोज   पुरून   पुन्हा   ऊकरून   काढ   रात्र चांदण्या   पसरवल्यात त्यावर … समाधी   म्हणून आपण आपलंच आठवत   राहतो आपल्यासाठी आणि   नसतो स्वार्थी … हे   आजही   पटत   नाही जाऊया   कधी … तू   सांग   जसं   जमेल सोबत   आलास तर   प्रेम नाही …, तर   अपघाती   म्रुत्युच्याही होतात   नोंदी .

पक्षांतर बंदी

  डोळे ,  कान ,  तोंड ही   तीन   इंद्रिय मुलभूत   अधिकारात   नाही   येत असं   ऊद्या   कानी   पडलं   तर तर   गांगरून   जायचं   कारण   नाही . तुम्ही   मेंदू   वापरू   शकता ,  बेलाशक पण   कुठे …?  त्याचे   नियम माहिती   अधिकारात   ग्राह्य   नसतील   पण विचार   स्वातंत्र्याला   हात   नाही   लावला हे   भक्तांना   खुश   करण्यासाठी तू   फक्त   भारतीय   असणं हे   जन्म   दाखल्यावर  “ पक्ष ”  निवडल्यावर जिथे   त्या   पक्षाचं   सरकार   असेल   तिथून १५   दिवसात   घेऊन   जावं   लागेल … निरर्थक   वाद   नको एका   आत्मनिर्भर   देशात   जन्मलास   तू   आता .  १५   चा   उल्लेख रूपयांशी   लावता   येणार   नाही . ध्यानी   ठेव .  चुकलास   तर   विरोधी   पक्षांचं   नागरिकत्व   देऊन त्या   राज्यात   रवानगी   ही   शिक्षा   अमलात   येईल .  तिथं   भारताचे   नियम   लागणार   नाही पक्षांतर   बंदी   इथे   लागू   होते . 

अबोल…

नको   म्हणतात   शब्द असेल   नजर   तर   दिसेल   अर्थ मी   ऐकतो   तु   सांग   म्हणतांना झोपी   जातात   शब्द पुन्हा   कोण   बोलणार ? दोघेही   ठरवतात ,  नाही   बोलायचं …  वेळ   जातेय   निघून आतुर   शब्द   धुसर ही   रोजच्या   गणिताची   सवय जमतंय   सर्व   पण   भीती   सर्वत्र हे   सुटलं   कोडं … तर   थांबेल   प्रवास ? संथ   सोबत ,  तरी   संपते   साथ अबोल   शब्द   हवेत   विरतात प्रवास   सुरू   अनंत   हवा श्वास   शब्द   बनु   शकतात ?

रहस्य

तु   कितीही   विचार मी   नाही   सांगणार … बदलून   पहा   विषय आणि   हे   पण   पहा मी   हाती   लागतो   का  ? निळ्याशार   समुद्राचं पाणी   नव्हतं   निळं दोन   शब्दांच्या   अंतरात पसरला   होता   सूर्य घेऊन   अंतराळातले   रहस्य … नसतं   कुठेच आणि   असते   बरंच हो   अन्   नाहीचं गणित   नसतेच   जुळत माझ्या   मनीचं   मी   पेरतो   मनी तु   जातेस   अडकत हे   हवंय   मला कुठेतरी   आहेस   तु हे   हवंय   मला …

हे आपण कुठे ऊभे आहोत?

मी   हो   म्हणतो तु   नाहीतल्या   जमेच्या   बाजू   तपासतो हवा ,  हवी   हवेत श्वासात   हवा   अॅाक्सीजन विचारेल   कुणी किती   जगलास हवा   सांगेल , …  मी   आहे   अजूनही तु   हो   बाजुला … हवेत   श्वास वार्यात   वादळ वादळातपण   श्वास … हवेसारखं   अनंत वादळासारखं   प्रचंड श्वासासारखं   बहारदार जगत   रहायचं …

गालिब

किससे   उम्मीद   रखी   तुने   गालिब माझी   गरज   खुदगरज   होत   जातेय अपनोंसे   मुस्कुरा ,  अपनोंपे   हंस   मत समजल्यावर   सर्व ,  राग   येतो   तुझा चांदनीयां   बिखेरके   तु   चल   तो   दीया सांग   घरी   कसा   जाऊ   खाली   हात ? उतर   मत ,  मंजिले   आगे   भी   मौजूद   हैं हे   मेल्यावर   कोण   कुणाला   सांगेल ? दिल   ए   नादान   तुझे   हुआ   क्या   है   उधारी   चुकवल्यावर   लोकं   विचारतात सियासतसे   सवाल   पुछ   कर   मैं   निकला मी   बरोबर   आहे ,  असं   ते   पण   म्हणतात किसी   आहमें   वो   यादसी   हैं   अब   भी   बाकि पडतोय   का   मी   मग   गजलच्या   भानगडीत छोड   सब   अधुरा ,  पुरा   हुआ   बुरा   कहेंगे   लोग जाऊद्या   म्हणतेस ,  सूर्य   ऊगवेल   ना   पुन्हा .  आख़िर   इस   दर्द   की   दवा   क्या   है ? अशा   प्रश्नांची   उत्तरं ,  देतं   कुणीतरी   जगात . 

गहराई

दिलकी   गहराईयोंमे   कुदके   देख   जालिम मिट्टीसे   जान   बनाना   मुश्किल   है   अब   भी लोग   सामने   देखके   मुस्कुराते   हैं   कुछ   चेहरे मैं   अच्छा   हुं   बुरा   देखकर   भी   पहचानता   हुं कभी   तो   जमेगी   बात   सोचकर   चलता   रहा आधी   जिंदगी   चला ,  किस्से   आधे   भी   न   चले तुझे   पहेली   समझके   लोग   बुझते   रहे मैं   जवाब   तो   दे   दुं ,  तु   मुकर   जायेगी   चुपसे याद   दिला   मुझे   उम्र   कि ,  मै   अकेला   नही बयां   करने   के   लिऐ   तजुर्बे   कैसे   मिलते   है खुश   है   तु   किस   बातपे ,  सोचता   हैं   वो खुश   हैं   तु   इस   बातपे ,  वो   जानता   ही   नही मैं   भुल   बैठा   तुझे   अपनी   समझदारीसे समझ   जाने   के   कुछ   अपने   फायदे   भी   हैं दिल   दिमाग   की   गलती   जुबां   नही   मानती कहती   हैं   प्यार   हैं ,  हम   हमजुबां   तो   नही ?